ना लिखने को कोई बात है,
ना उभरे कोई जज्बात हैं,
बस मै हूँ ..सिर्फ मै
और ये तनहा रात है
ना तारें हैं टिमटिमाने को
ना चाँद है गुनगुनाने को
बस स्याह अकेली रात है
मन मेरा बहलाने को
ना होठों पर है हंसी
ना आंसुओ की सौगात है
बस मै हूँ ..सिर्फ मै
और ये तनहा रात है
ना स्याही है कलम में,
आक्रोश के शब्द बहाने को
ज़ज्ब कर गया कोरा कागज़ ,
दिल के सारे फसानो को
ना ख़ुशी से कोई उमंग ,
ना गमो का एहसास है ..
बस मै हूँ ..सिर्फ मै
और ये तनहा रात है
-----पारुल'पंखुरी'
picture courtesy : google
चाँद नहीं सूरज नहीं आसमां में तारा भी नहीं
ReplyDeleteमेरी तन्हा रातों का अब कोई सहारा भी नहीं।
एक तुम आओ तो कोई बात बने मेरे हमदम
तुम्हारे सिवा मुझे कोई और गंवारा भी नहीं॥
:) :) :)
तंह रात और मैं ... बहुत कल्पनाओं को जन्म दे देता है ... और निकल आते हैं शब्द ...
ReplyDeleteजैसे ये रचना ...
बहुत अच्छी कविता .........
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